कंस किला

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कहते है कि यमुना के उत्तरी तट स्थित कंस किला ही कंस का महल हुआ करता था। इसी किले की विशाल दीवारें यमुना जल की लहरों से शहर को बचाती थी। बाद में कंस किले पर ही महाराजा सवाई जयसिंह ने ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करने कि लिए वैधशाला का निर्माण कराया था। खंडहर हो चुका यह किला आज भी शहर की पहचान है। कहते हैं कि मथुरा में यमुना नदी के उत्तरी तट पर बने कंस किले में सभी प्रकार की सुख सुविधाएं मौजूद थीं। किले का स्वरुप बताता है कि कभी यह भव्य और विशाल हुआ करता था। विशाल क्षेत्र में फैले इस किले की दीवार काफी लंबी और चौड़ी हैं। दीवारें इतनी मजबूत थी कि इन्हें तोड़ पान संभव नहीं था। सुरक्षा कि लिहाज से कई रास्ते इस तरह से बनाए गए जो भूमिगत होकर यमुना में निकल जाते हैं। माना जा रहा है कि इन्हीं रास्तों का प्रयोग कंस और कंस के परिवार वाले यमुना तक पहुँचने में किया करते होंगें।

लेकिन उचित देख रेख न हो पाने से कंस किले के पीछे की दीवार के आसपास की स्थिति भी जीर्ण-शीर्ण होने लगी थी। साथ ही यमुना किनारे जहाँ सुंदर दृश्य होने चाहिये थे, वहाँ गंदगी के ढेर मानों जन-मानस को चुनौतियाँ दे रहे हों, इस जगह का कुछ नहीं हो सकता। पुराने चित्र में आप स्वयं देख सकते है, कि किस तरह से यमुना मिशन की दृढ़ इच्छा शक्ति ने यमुना शुद्धिकरण की पहल करते हुए वर्ष 2015 में अपनी आरम्भिक यात्रा में ही एक महत्वपूर्ण स्थान की कायाकल्प करने की ठान ली थी। जिसका सफल परिणाम इन चित्रों में आप स्पष्ट रुप से आप देख सकते हैं।