यदि आप लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित होकर कार्य करते है तो अवश्यमेव सफलता मिलती है। कृष्ण गंगा घाट का वर्तमान समय में इतना सुदंर दृश्य देखकर आप आश्चर्य चकित हो जाएंगे कि ये घाट वही है, जिसका केवल नाम शेष था, अस्तित्व नहीं। विगत वर्षों में यमुना नदी के उफान साथ आई गाद ने इन घाटों को भी जमीदोज कर दिया था और लोग भी भूल गए थे कि यहाँ कोई घाट भी था। लेकिन वर्षों बाद आये आस्था के समुन्दर में उफान आया और कान्हा के विस्मृत घाट “यमुना मिशन” के प्रयास से अस्तित्व में आ गए। दिन रात काम करके जेसीबी द्वारा कीचड़ (गाद) हटाई गई। जन सहयोग मिला और फिर यमुना मिशन के द्वारा यहाँ जीर्णेद्धार कराया गया। घाट के किनारे पर सुंदर वृक्षावली लगाई गई। आज इस घाट पर लोग पूजन करते हैं, भजन कीर्तन के भक्तिरस से अविर्भूत होते है, बच्चे घंटों स्वछंद क्रीड़ा करते हैं। घने वृक्षों के बीच स्वच्छ वायु में लोग प्रायःसुबह और शाम के समय प्राणायाम, व्यायाम का लाभ लेते हैं। इस घाट के विषय में यह मान्यता है कि महाऋषि वेदव्यास की यह जन्मस्थली है। वेदव्यास जी ने यहाँ गंगा यमुना और सरस्वती का मिलन कराया था। वर्तमान समय में “कृष्णगंगा घाट” बृजवासियों में ही नहीं बल्कि पर्यटकों के भी आकर्षण का केन्द्र बन गया है।