स्वर्ण प्राकृतिक है, स्वर्णकार अपनी चेतना से, अपनी कला से उसमें सौन्दर्य भरता है, उसे अलंकार का स्वरूप प्रदान करता है । वैद्य लोहे-जैसी धातुको संस्कारित कर भस्म बनाता है,उसमें अपार शक्ति भर देता है और उसे अमूल्य बना देता है । माली उपवन के झाड़-झंखाड़ साफ करके वृक्षों को अपनी कला से चमत्कृत करता है, उनमें सौन्दर्य भरता है और उनको सजाता है । संस्कार प्रकृति का परिमार्जन करते हैं, उसका शोधन करते हैं, प्राकृतिक प्रवृत्तियों का उन्नयन करते हैं उनको मर्यादित करते हैं – संयमित करते हैं जिससे नैतिकता की अभिव्यक्ति होती है । वे कण्टकाकीर्ण भूमि को स्वच्छ, निरापद, आलोकित और प्रशस्त बनाते हैं । दोषों का निराकरण कर गुणों का आधान करते हैं ।
ऐसे यमुना मिशन कूड़-कचरे को उर्वरक उपजाऊ मिट्टी (खाद) में परिवर्तित कर उस पर वृक्षारोपण करता है , शिशु की तरह देखभाल करता है । फिर सुन्दर उपवन और जंगल तैयार होता है । यमुना मिशन के संस्थापक श्री प्रदीप बंसल जी तपस्या और धैर्य के सेवा का फल सभी को आनंदित कर रहा है ।
– Ashok Upadhyay